बिहार राज्य के जमुई जनपद के अंतर्गत गिद्धौर की ऐतिहासिक नगरी में तत्कालीन महाराजबहादुर श्री चंद्रमौलीश्वर प्रसाद सिंह K.C.I.E की पुण्यस्मृति में संस्कृत शिक्षा के प्रचार – प्रसार हेतु स्थापित संस्कृत विद्यालय जो 1970 में श्री रावणेश्वर संस्कृत महाविद्यालय के रूप में कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा की स्थाई संबंधन प्राप्त इकाई के रूप में आज प्रतिष्ठापित है।
प्राच्य विद्यानुरागी महाराजा गिद्धौर द्वारा बिहार राज्य के दक्षिणी भूभाग के जमुई, लखीसराय, मुंगेर एवं शेखपुरा जिलों के मध्य इस एकमात्र संस्कृत संस्थान की स्थापना संस्कृत भाषा के ज्ञान के साथ – साथ भारतीय संस्कृति के मूलमंत्र मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव, मातृ वत् परदारेषु, सर्वे भवन्तु सुखिनः, वसुधैव कुटुम्बकम् आदि की उदात्त अवधारणा के साथ ही जन जन में उत्तम संस्कार प्रदान करने तथा विशाल सामाजिक सरोवर में ज्ञान गौरव के खिले हुए कमल की सुगन्ध से दिग्दिगन्त को सुवासित होने के लिए की गई है।
स्थापना काल से ही स्व0 राज माता गिरिराज कुमारी, महाराजा प्रताप सिंह, कुमार सुरेंद्र सिंह ,कुमार वीरेन्द्र सिंह आदि शिक्षाविदों द्वारा संरक्षित इस संस्था में प्राच्य विद्या के अंतर्गत ज्योतिष शास्त्र के मूर्धन्य लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् प. षड़ानन झा, वेद शास्त्रज्ञ कुलावतंस विद्वद्वरेण्य प. दामोदर झा आदि अप्रतिम प्रतिभा वैदुष्य सम्पन्न विद्वानों द्वारा अपनी सारस्वत साधना की प्रभा से देवाधिदेव महादेव श्री रावणेश्वर वैद्यनाथ के इस पावन क्षेत्रान्तर्गत महाराजा गिद्धौर की ऐतिहासिक भूमि विद्योतित एवं महिमा मण्डित होती रही है। इस संस्कृत महाविद्यालय में संस्कृत वाङ्मय के ज्योतिष, व्याकरण, साहित्य एवं वेद सहित आधुनिक विषयों का अध्यापन सुयोग्य विद्वानों द्वारा किया जा रहा है।